याद किया जब  पलछिन, हर लम्हा जी उठा है,
स्मृति के आँचल में गीत आज भी ताज़ा है...
 
स्मृति के आँचल में गीत आज भी ताज़ा है...
सुबह जिसे सहलाती और शाम गुनगुनाती थी, 
शबनम बनकर भीतर उतर जाती थी,
पलकों पर आते ही फिर बिखर जाती थी...
 
शबनम बनकर भीतर उतर जाती थी,
पलकों पर आते ही फिर बिखर जाती थी...
ज़िन्दगी एक गीत में ही सिमट जाती थी,
एक रचना जीने का सबब बन जाती थी,
छोटे से ख्वाब में दुनिया नज़र आती थी...
 
एक रचना जीने का सबब बन जाती थी,
छोटे से ख्वाब में दुनिया नज़र आती थी...
उन सपनो को जिया है इस पलछिन में,
अधूरे गीतों को गाने की ख्वाहिश कर बैठा है...
अधूरे गीतों को गाने की ख्वाहिश कर बैठा है...
याद किया जब पलछिन, हर लम्हा जी उठा है,
स्मृति के आँचल में गीत आज भी ताज़ा है...
स्मृति के आँचल में गीत आज भी ताज़ा है...

 






 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
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