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Thursday, December 29, 2011

बातें कुछ अनकही सी...

 बातें कुछ अनकही सी दिल में ही रह गयी... यादें कुछ अनछुई सी आँखों में ही रह गयी...  सोचा ये नहीं था एक ऐसा पल भी आएगा ... मन में टीस उठेगी और चेहरा मुस्कुराएगा ... बातें कुछ अनकही सी दिल में ही रह गयी... यादें कुछ अनछुई सी आँखों में ही रह गयी... ख्वाबों में घर करेंगी तेरी हर एक अदा... शाख-ए-जां पर खिलेगी बनके कली सदा... बातें कुछ अनकही सी दिल में ही रह गयी... यादें कुछ अनछुई सी आँखों में ही रह गयी... आह्ट एक शबनमी सी आने को है ... होनी...

Sunday, July 24, 2011

कहानी Salary की

 वो पहली तारिख का इंतज़ार करना वो बार बार कैलेंडर देखना वो सेलेरी को लेकर नए नए मनसूबे बांधना आमदनी से चौगुना खर्चा निकलने पर दुखी होना फिर उन सब में भी बचत करने की सोचना फिर धीरे धीरे सेलेरी की तारिख का नज़दीक आना और मजबूती से कैलेंडर पर नज़रे जमाये रहना और फिर मालूम चलना सेलेरी तो जमा ही नहीं हुई अनमने मन से घर को लौटना और नयी तारिख देखना फिर से कैलेंडर को घूरना और बुझे मन से आंखे मूंदना अगले दिन फिर  से नए खयाली पुलाव पकाना आखिरकार हरी...