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Sunday, July 24, 2011

कहानी Salary की

 
वो पहली तारिख का इंतज़ार करना
वो बार बार कैलेंडर देखना
वो सेलेरी को लेकर नए नए मनसूबे बांधना
आमदनी से चौगुना खर्चा निकलने पर दुखी होना
फिर उन सब में भी बचत करने की सोचना
फिर धीरे धीरे सेलेरी की तारिख का नज़दीक आना
और मजबूती से कैलेंडर पर नज़रे जमाये रहना
और फिर मालूम चलना सेलेरी तो जमा ही नहीं हुई
अनमने मन से घर को लौटना और नयी तारिख देखना
फिर से कैलेंडर को घूरना और बुझे मन से आंखे मूंदना
अगले दिन फिर  से नए खयाली पुलाव पकाना
आखिरकार हरी पत्तियों का हाथ में आना
और वो ख़ुशी शब्दों में बाया न कर पाना
जल्द से जल्द घर पहुँचने को बैचैन होना
और ट्रेफिक भरी सड़क देखकर झल्लाना
घर आते ही "माँ" के सामने सीना फुलाए जाना
और उसके हाथ में पूरी की पूरी गड्डी रख देना
"माँ" का सेलेरी को मंदिर में रख देना
यह कह कर की लक्ष्मी आते ही खर्च नहीं करते
वो २४ घंटे का इंतज़ार सौ सालो जैसा लगना
अगले दिन "माँ" को हिसाब चुकते करते देखना
फिर अपनी पॉकेट मनी का हाथ में आना
उसको अपने पर्स में करीने से रखना
फिर बार बार पर्स को खोल कर देखना
फिर अपने मनसूबो को आयाम देने की सोचना
और ये सोचना अरे ये काम इतना भी ज़रूरी नहीं
अगली बार देखेंगे और पैसे फिर बचा लेना
फिर सोचना ये खरीद लू वो खरीद लू
और फिर फ़िज़ूल खर्ची समझ कर भूल जाना
करीब करीब आधा महीना इसी कशमश में गुज़ार देना
और फिर एक दिन "माँ" का कहना ज़रा कुछ पैसे देना
घर के कुछ काम बाकि रह गयी हैं पैसो की ज़रूरत है
फिर ख़ुशी खशी अपनी पॉकेट मनी "माँ" के हवाले कर देना
और फिर अपने किये समझौते पर गर्व करना!


और फिर.......

    फिर से उसी पहली तारिख का इंतज़ार करना,
    कैलेंडर की उसी तारिख पर सर्कल बना देना!

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